Wednesday, January 16, 2019

शाहिद कपूर संग कोल्ड वॉर पर रणवीर सिंह ने तोड़ी चुप्पी? किस बात पर हुआ था विवाद

 में आई फिल्म पद्मावत की रिलीज के दौरान रणवीर सिंह और शाहिद कपूर की कोल्ड वॉर ने खूब सुर्खियां बटोरीं. कहा गया कि दोनों एक-दूसरे को बिल्कुल भी पसंद नहीं करते. यहां तक कहा गया कि दोनों एक्टर्स के बीच तालमेल बनाने के लिए दीपिका पादुकोण की मदद ली गई. हालांकि मीडिया से बातचीत में कभी दोनों ने कथित कोल्ड वॉर को खुलकर नहीं स्वीकारा. एक इंटरव्यू में रणवीर से शाहिद संग मनमुटाव पर सवाल किया गया.

रणवीर ने कहा, ''शाहिद कपूर और मेरे बीच सबकुछ ठीक था. हम एकसाथ बहुत खुश थे. मुझे लगता है कि पद्मावत की शूटिंग के दौरान हमने अच्छा समय बिताया.'' बताते चलें कि शाहिद ने पद्मावत की रिलीज के दौरान कहा था कि वे भंसाली की फिल्म के सेट पर खुद को "आउटसाइडर" महसूस करते हैं. जिसके जवाब में रणवीर ने कहा था, "मैंने शाहिद को सेट पर घर की तरह महसूस कराने की हर संभव कोशिश की थी."


दोनों के बीच ये मनमुटाव रणवीर सिंह के उस बयान को माना जाता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि वे "कमीने" में शाहिद का रोल उनसे बेहतर कर सकते थे. तब जाकर शाहिद ने भी रणवीर पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि ''अगर मैं पद्मावत में खिलजी का रोल करता तो मेरी अलग अप्रोच होती."एक्टर्स के इन्हीं बयानों के आधार पर दोनों के बीच कोल्डवॉर की बातें सामने आती रही हैं. 

हालांकि पिछले साल इंडिया टुडे को दिए इंटरव्यू में रणवीर ने अपने कमेंट के लिए शाहिद कपूर से माफी भी मांगी थी. उन्होंने कहा था- ''बॉलीवुड में मेरे पहले साल में मैं काफी एरोगेंट था. ये सब कुछ मुझे नहीं कहना चाहिए था. मुझे अपने कमेंट पर खेद है.''

बता दें, पद्मावत में रणवीर ने पहली बार नेगेटिव रोल प्ले किया था. जल्द ही एक्टर की मूवी गली बॉय रिलीज होने वाली है. इसमें उनके अपोजिट आलिया भट्ट नजर आएंगी. हाल ही में रिलीज हुई रणवीर सिंह की सिम्बा बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट साबित हुई है.

उधर, पिछले साल पद्मावत के बाद शाहिद की फिल्म बत्ती गुल मीटर चालू आई थी. फिल्म आने से पहले चर्चाओं में थी, लेकिन बॉक्स ऑफिस पर कुछ ख़ास कमाल दिखाने में नाकामयाब रही. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए जितना महत्वपूर्ण है, उससे कहीं ज्यादा इसकी अहमियत समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव और बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती के लिए मानी जा रही है. यही वजह है कि अपने सियासी वजूद को बचाए रखने के लिए सपा-बसपा ने 23 साल पुरानी दुश्मनी भुलाकर गठबंधन करने का फैसला किया है. इसके बावजूद अगर सपा-बसपा मिलकर भी नरेंद्र मोदी के विजय रथ को उत्तर प्रदेश में नहीं रोक पाते हैं तो फिर दोनों दलों खासकर बसपा के लिए अपने राजनीतिक वजूद को बरकरार रख पाना मुश्किल साबित हो सकता है.

मायावती और अखिलेश यादव ने गठबंधन कर नरेंद्र मोदी के सामने एक बड़ी चुनौती पेश कर दी है, लेकिन जिस तरह से कांग्रेस ने सूबे के छोटे क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर तीसरी ताकत के रूप में सभी सीटों पर उतरने का फैसला किया है. सपा-बसपा गठबंधन दलित, यादव और मुस्लिम वोटबैंक के दम पर जहां सूबे की सियासी जंग फतह करने की उम्मीद लगा रही हैं.

वहीं, बीजेपी सवर्ण, गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलित मतदाताओं के सहारे 2014 जैसे नतीजे दोहराने की बात कह रही है. हालांकि, कांग्रेस को तीन राज्यों में मिली जीत से उसके हौसले बुलंद है. ऐसे में मुकाबला त्रिकोणीय होने की संभावना दिख रहा है. सूबे का सियासी संग्राम में कोई भी किसी से कम नहीं नजर आ रहा है. ऐसे में सपा-बसपा सूबे में मोदी को मात नहीं दे पाते हैं तो फिर उनके सामने सियासी संकट खड़ा होना लाजमी है.

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