Monday, March 25, 2019

आजतक ने शुरू की 'IPL पारी', किंग्स XI पंजाब का बना टाइटल स्पॉन्सर

आईपीएल के 12वें संस्करण के टाइटल प्रायोजक के तौर पर 'आजतक' शामिल हो गया है. आजतक ने इस साल किंग्स इलेवन पंजाब (Kings XI Punjab) की जर्सी के अगले हिस्से में अपनी जगह पक्की कर ली है. आजतक पिछले 19 वर्षों से लगातार नंबर-1 चैनल है.

रविवार को किंग्स इलेवन पंजाब की नई जर्सी की लॉन्चिंग के मौके पर सीईओ सतीश मेनन ने कहा, 'हम इस साल न्यूज चैनल आजतक के साथ अपनी साझेदारी की घोषणा करते हुए खुश हैं. यह टीवी चैनल जो अपने त्वरित विश्लेषण के लिए उतना ही जाना जाता है, जितना कि अपनी विश्वसनीयता के लिए.'

जर्सी लॉन्चिंग के दौरान किंग्स इलेवन पंजाब के कप्तान आर. अश्विन और कोच माइक हेसन भी मौजूद रहे. अश्विन ने कहा, 'गर्व की बात है कि आजतक अब हमारे साथ है.' किंग्स इलेवन पंजाब के अन्य प्रायोजकों में बागेश्री इन्फ्राटेक, वी.आई.पी. इंडस्ट्रीज, Jio, Fena, Royal Stag और Finale Cable हैं, जो पिछले सीजन से इस फ्रेंचाइजी का समर्थन कर रहे हैं.

सतीश मेनन ने कहा, 'हम आईपीएल के 12वें सीजन में आशा और उत्साह के साथ आगे बढ़ रहे हैं, क्योंकि इस यात्रा में हमारे साथ सही ब्रांड हैं. उनका समर्थन हमारी ताकत है, क्योंकि हमारा लक्ष्य सच्ची भावना से खेले गए प्रदर्शनों के साथ मैदान पर उत्कृष्ट प्रदर्शन करना है.'

इंडिया टुडे ग्रुप की वाइस चेयरपर्सन कली पुरी ने कहा, 'इंडिया टुडे ग्रुप 2019 के बहुप्रतीक्षित क्रिकेट आयोजन के साथ वास्तव में उत्साहित है. किंग्स इलेवन पंजाब के साथ आजतक की यह साझेदारी सबसे बड़ी खबर है. किंग्स इलेवन टीम को शुभकामनाएं, एक अद्भुत टूर्नामेंट की उम्मीद है और आजतक की तरह, यह 'सबसे तेज' टीम जीते.'

किंग्स इलेवन पंजाब की टीम मौजूदा आईपीएल में अपने अभियान का आगाज 25 मार्च को जयपुर में राजस्थान रॉयल्स के खिलाफ करेगी.

अग्निवेश अयाची 20 लाख रुपये, वरुण चक्रवर्ती 8.40 करोड़, दर्शन नलकंडे, 30 लाख, अर्शदीप सिंह 20 लाख, प्रभसिमरन सिंह 4.80 करोड़, हरप्रीत बरार 20 लाख, आर. अश्विन 7.60 करोड़, डेविड मिलर 3.00 करोड़, हार्डस विल्जोन 75 लाख, मयंक अग्रवाल 1.00 करोड़, करुण नायर 5.60 करोड़, मंदीप सिंह 1.40 करोड़, केएल राहुल 11.00 करोड़, एंड्रयू टाई 7.20 करोड़, मोहम्मद शमी 4.80 करोड़, क्रिस गेल 2.00 करोड़, मुरुगन अश्विन 20 लाख, अंकित राजपूत 3.00 करोड़, एम हेनरिक्स 1.00 करोड़, निकोलस पूरन 4.20 करोड़, सरफराज खान 25 लाख, सैम कुरैन 7.20 करोड़, मुजीब उर रहमान 4.00 करोड़

जिला स्तरीय टूर्नामेंट में बेहद अच्छा प्रदर्शन करने के बाद रसिक सलाम को टैलेंट हंट कैंप में भाग लेने के लिए चुन लिया गया. यह टैलेंट हंट कैंप इरफान पठान के जिम्मे था. एसके स्टेडियम (श्रीनगर) में कैंप शुरू हुआ. इस दौरान रसिक के साथ कुछ ऐसा हुआ, जिसके बारे में उसने खुद भी नहीं सोचा होगा.

रसिक सलाम एक इंटरव्यू में कह चुके हैं, 'जब मुझे गेंद दी गई, तो मैंने अपने आप से कहा कि यह दिन खुद को साबित करने का दिन है. मैंने तीन गेंदें ही फेंकी थीं कि इरफान सर ने मुझे बुलाया, उन्होंने कहा-  इतनी कम उम्र में कोई इतनी तेज गेंद कैसे डाल सकता है. तुम्हारा क्या नाम है? वह मुझे अपने साथ परवेज भैया (परवेज रसूल) के पास ले गए और कैंप के समापन के बाद मिलने के लिए कहा.'

इसके बाद रसिक सलाम को इरफान पठान और जम्मू-कश्मीर के कोच मिलाप मवांडे के साथ नेट्स पर कई उपयोगी टिप्स लेते देखा गया. और यहीं से रसिक सलाम क्रिकेट की ऊंचाइयां छूने की ओर ओर तेजी से आगे बढ़ने लगा.

Monday, March 18, 2019

लोकसभा चुनाव 2019: पश्चिम बंगाल में उधार के उम्मीदवारों के भरोसे बीजेपी

यह शब्द तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी के हैं. अपनी पार्टी के उम्मीदवारों की सूची जारी करते समय बीजेपी पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने यह कहा था.

अब बंगाल के बीजेपी नेतृत्व ने भी मान लिया है कि उधार के यानी दूसरे दलों से पार्टी में शामिल होने वाले नेता ही उनका सहारा हैं.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने व्यंग्य करते हुए कहा है, "कहां तो बीजेपी बंगाल की 42 में से 23 सीटें जीतने का सपना देख रही है और कहां उम्मीदवारों का ही टोटा है."

प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष भी मानते हैं कि पार्टी में जीत सकने लायक पर्याप्त उम्मीदवार नहीं हैं. इसलिए हाल में दूसरे दलों से आने वालों को मैदान में उतारने पर विचार चल रहा है.

हाल में तृणमूल कांग्रेस के दो सांसदों और एक विधायक अर्जुन सिंह के अलावा कांग्रेस और सीपीएम के भी एक-एक विधायक बीजेपी में शामिल हुए हैं और पार्टी उन सबको लोकसभा चुनाव का टिकट देने पर विचार कर रही है. इससे पार्टी के निचले स्तर के नेताओं और कार्यकर्ताओं में असंतोष बढ़ रहा है.

बीजेपी में तृणमूल कांग्रेस और दूसरे दलों के नेताओं के शामिल होने की शुरुआत बीते महीने हुई थी. दरअसल, आगे की राह मुश्किल जान कर ही पार्टी के कुछ नेता दूसरे दलों के नेताओं को अपने पाले में करने की कवायद में जुटे थे.

उनको अपनी इस मुहिम में कुछ कामयाबी तो मिली है. लेकिन अपनी मूल पार्टी से अलग होने वाले यह नेता बीजेपी को कितना फ़ायदा पहुंचाएंगे, यह साफ़ नहीं है.

तृणणूल कांग्रेस के दो निवर्तमान सांसदों—सौमित्र ख़ान और अनुपम हाजरा हाल में बीजेपी में शामिल हुए हैं. लेकिन उन दोनों के ख़िलाफ़ पार्टी-विरोधी गतिविधियों के आरोप में तृणमूल नेतृत्व ने कार्रवाई की थी और अबकी बार उनका पत्ता साफ़ होना तय था.

ऐसे में अपने राजनीतिक वजूद की रक्षा के लिए उनके सामने बीजेपी का हाथ थामने के अलावा कोई चारा नहीं था.

दूसरी ओर, बीजेपी को भी ऐसे ही नेताओं की तलाश थी जो अपने बूते उसे सीटें न सही, कुछ वोट ज़रूर दिला सकें.

बोलपुर से सांसद हाजरा को साल की शुरुआत में 9 जनवरी को तृणमूल कांग्रेस से निकाल दिया गया था. बीते सप्ताह उनके अलावा सीपीएम विधायक खगेन मुर्मू और दुलाल चंद्रबर भी बीजेपी में शामिल हो गए.

कोलकाता से सटे उत्तर 24-परगना की भाटापाड़ा सीट से चार बार विधानसभा चुनाव जीतने वाले तृणमूल कांग्रेस नेता अर्जुन सिंह की इलाके के जूट मिलों में काम करने वाले हिंदीभाषियों पर खासी पकड़ है.

वे इस बार बैरकपुर संसदीय सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे. लेकिन पार्टी नेतृत्व ने जब वहां दिनेश त्रिवेदी को ही दोबारा मैदान में उतारने का फैसला किया तो अर्जुन सिंह ने बीजेपी में शामिल होने का मन बना लिया.

पार्टी उनको बैरकपुर सीट पर अपना उम्मीदवार बनाएगी. बीजेपी में शामिल होने के मौक़े पर उनका कहना था, "मैं महाभारत के अर्जुन की तरह हूं और तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को बीजेपी में लाने के प्रयास में जुटे मुकुल राय कृष्ण की."

बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष मानते हैं कि पार्टी के पास योग्य उम्मीदवारों का अभाव है. इसी वजह से दूसरे दलों से योग्य लोगों को पार्टी में शामिल किया जा रहा है.

जहां तक अर्जुन सिंह के पार्टी में शामिल होने का सवाल है, घोष कहते हैं कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में भाटापाड़ा विधानसभा इलाके में बीजेपी पहले स्थान पर थी.

घोष का कहना है, "अर्जुन का बीजेपी में शामिल होना दोनों के लिए फायदेमंद है. लेकिन उनको सिर्फ़ भाटापाड़ा ही नहीं बल्कि बैरकपुर संसदीय क्षेत्र के सातों विधानसभा क्षेत्रों में जीत हासिल करनी होगी."

पार्टी अपने पुराने नेताओं व कार्यकर्ताओं को टिकट देने की बजाय दूसरे दलों से आने वालों को अपना उम्मीदवार क्यों बना रही है?

इस सवाल पर घोष कहते हैं, ''पुराने नेता तो विधानसभा और पंचायत चुनाव लड़ चुके हैं. लोकसभा चुनाव में टिकट उनको ही दिया जाएगा जो इसके योग्य हैं. इस मामले में इस पर ध्यान नहीं दिया जाएगा कि कौन बाहर से आया है और कौन पार्टी का पुराना नेता है.''

वैसे, दिलीप की दलील है कि बीजेपी के लगातार बढ़ते जनाधार की वजह से ही दूसरे राजनीतिक दलों के नेता पार्टी में शामिल हो रहे हैं.

दूसरे दलों से आने वाले नेताओं को तरजीह मिलते देख पार्टी के एक गुट में भारी असंतोष है. लेकिन प्रदेश नेतृत्व के सामने दूसरा कोई विकल्प नहीं है.

एक नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, "केंद्रीय नेतृत्व को खुश करने के लिए बंगाल से कई सीटे जीतनी होंगी. इसके लिए तृणमूल कांग्रेस के बागी नेताओं को टिकट देने के अलावा कोई रास्ता नहीं है. लेकिन इससे पार्टी के पुराने नेता नाराज़ हैं."

बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुकुल राय दावा करते हैं, "विभिन्न राजनीतिक दलों के सांसद और विधायकों समेत कई नेता पार्टी में शामिल होने के इच्छुक हैं."

पार्टी के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का आरोप है कि दूसरे दलों से पार्टी में आने वालों के ख़िलाफ़ झूठे मामले दायर किए जा रहे हैं.

दूसरी ओर, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी ने पार्टी छोड़ कर बीजेपी में शामिल होने वालों को विश्वसाघाती करार देते हुए कहा है कि वोटर ही ऐसे लोगों को समुचित जवाब देंगे.

वह कहती हैं, "बीजेपी के पास चुनाव लड़ने लायक उम्मीदवार नहीं हैं. इसलिए पार्टी के नेता हाथों में टिकट लेकर घर-घर भीख मांगते हुए लोगों से चुनाव लड़ने की अपील कर रहे हैं. एक विश्वासघाती पहले ही बीजेपी में जा चुका है और अब वही दूसरों को पार्टी में ले जा रहा है."

Friday, March 15, 2019

भारत-पाकिस्तान तनाव के बीच एक सरहद पर उत्साह का माहौल भी

गोविंद सिंह ने अपने जीवन के 18 वर्ष करतारपुर साहिब में गुरुद्वारे के ग्रंथी के तौर पर गुज़ारे हैं.

तीर्थस्थल की पहली मंज़िल पर बने एक बड़े हॉल में अकेले बैठकर गुरू ग्रंथ साहिब का पाठ कर रहे हैं, कमरे की खास सजावट की गई है.

यह हॉल आम तौर पर तीर्थयात्रियों से खचाखच भरा रहता है, लेकिन जब से यहां करतारपुर साहेब कॉरिडोर के निर्माण का काम चल रहा है, इसे तीर्थयात्रियों के लिए बंद कर दिया गया है.

अपना पाठ पूरा करने के बाद गोविंद सिंह कमरे से बाहर निकले और एक खिड़की से बाहर देखने लगे. वे पिछले कुछ महीनों की गतिविधियों को देखकर हैरत में हैं. वे कहते हैं, "करीब एक साल पहले यह जगह अलग-थलग थी, हमसे मीडिया के लोग कभी बात नहीं करते थे, तब सब कुछ बहुत शांत था."

आज दर्ज़नों ट्रक, क्रेन और डंपर पूरे इलाके में काम में जुटे हुए हैं. इमारत के चारों ओर की ज़मीन खोद दी गई है, सामने कीचड़ से भरी एक सड़क है जिसे पक्का बनाने का काम चल रहा है.

वे कहते हैं, "हमने कभी कल्पना नहीं की थी कि यह सरहद खुलेगी, यह तो चमत्कार है."

इमरान खान के पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनने के मौके पर कांग्रेस पार्टी के नेता और पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू जब अगस्त 2018 में पाकिस्तान आए तो किसी को अंदाज़ा नहीं था कि क्या होने वाला है.

जब सिद्धू पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा से गर्मजोशी से मिले तो भारत में उसकी राजनीतिक तौर पर आलोचना भी हुई लेकिन जब सरहद के खुलने की खबर आई तो भारत में सिख समुदाय में खुशी की लहर दौड़ गई.

28 नवंबर 2018 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कोरिडोर के निर्माण कार्य का उदघाटन किया, गोविंद सिंह ने बताया कि हम जहाँ खड़े हैं वहां से भारत की सीमा सिर्फ़ चार किलोमीटर दूर है और कोरिडोर बनने के बाद तीर्थयात्री बहुत आसानी से आ सकेंगे.

गोविंद सिंह ने उंगली के इशारे से दिखाया, "वो जो पत्थर दिख रहे हैं न, वहां रावी नदी के ऊपर 800 मीटर लंबा पुल बनने वाला है जिससे दोनों देशों की सीमाएं जुड़ जाएँगी."

बताया जा रहा है कि निर्माण कार्य 40 प्रतिशत पूरा हो चुका है, गोविंद से बताते हैं, "यहां इतने लोग काम कर रहे हैं कि मैं गिन भी नहीं सकता, लोग अलग-अलग शिफ़्टों में 24 घंटे काम कर रहे हैं."

प्रार्थना हॉल, बारादरी, यात्रियों के ठहरने के कमरे और लंगर की रसोई, इन सबको भी बड़ा बनाने का काम तेज़ी से चल रहा है.

यह सिखों के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में गिना जाता है, यहां सिखों के पहले गुरू नानकदेव ने अपने जीवन के अंतिम 17 वर्ष यहीं बिताए और 16वीं सदी में उनका निधन भी यहीं हुआ.

गुरुद्वारे के बड़े सफ़ेद गुंबद को भी बेहतर बनाया जा रहा है. गोविंद सिंह बताते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच पिछले कुछ समय से चल रहे तनाव के बावजूद उन्हें पूरा भरोसा था कि उसका असर निर्माण कार्य पर नहीं पड़ेगा.

गोविंद सिंह ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा, "पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष ने सिखों से वादा किया है कि काम हर हाल में और जल्द-से-जल्द पूरा होगा." उन्होंने कहा कि निर्माण कार्य में इस बात का ध्यान रखा गया है कि बाबा नानकदेव से जुड़ी किसी चीज़ को कोई नुकसान न हो.

करतारपुर गलियारा खुलने से सिख यात्रियों को काफ़ी सुविधा होगी, फ़िलहाल उन्हें पाकिस्तान जाकर भीतर की तरफ़ से गुरुद्वारे तक आना पड़ता है जबकि वे कोरिडर के खुलने पर भारत की तरफ़ से पैदल भी गुरुद्वारे तक जा सकेंगे.

ऐसा नहीं है कि इससे सिर्फ़ सिख ही खुश हैं, पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाके के लोगों में भी काफ़ी ख़ुशी है, डोडा गांव के रफ़ीक मसीह कहते हैं, "पहले यह जगह जंगल की तरह थी लेकिन अब पहचान में नहीं आती, इस बदलाव से आपसास के हज़ारों परिवारों को फ़ायदा होगा. यहां सड़क, स्कूल, अस्पताल, मॉल सब बनेंगे, कारोबार होगा, लोगों को रोज़गार मिलेगा."

Tuesday, March 5, 2019

मोदी सरकार की नोटबंदी से फ़ायदा या नुकसान?

नवंबर, 2016 में भारत सरकार ने 85 फ़ीसदी मूल्य के नोटों को चलन से हटाने का फ़ैसला रातोंरात लिया. 500 और 1000 रुपये के नोटों को अवैध करार कर दिया गया.

भारत सरकार की ओर से कहा गया कि इस फ़ैसले से लोगों की अघोषित संपत्ति सामने आएगी और इससे जाली नोटों का चलन भी रुकेगा. ये भी कहा गया कि इस फ़ैसले से भारतीय अर्थव्यवस्था में नकदी पर निर्भरता कम होगी.

इस फ़ैसले के नतीजे मिले जुले साबित हुए.

नोटबंदी से अघोषित संपत्तियों के सामने आने के सबूत नहीं के बराबर मिले हैं हालांकि इस क़दम से टैक्स संग्रह की स्थिति बेहतर होने में मदद मिली है.

नोटबंदी से डिजिटल लेनदेन भी बढ़ा है लेकिन लोगों के पास नकद रिकार्ड स्तर तक पहुंच गया है.

नोटबंदी का फ़ैसला चौंकाने वाला था और जब इसे लागू किया गया तो काफी भ्रम की स्थिति भी देखने को मिली थी.

जब ये फ़ैसला लिया गया तब सीमित अवधि तक प्रत्येक शख़्स को 4000 रुपये तक के प्रतिबंधित नोटों को बैंकों में बदलने की सुविधा थी.

नोटबंदी के आलोचकों के मुताबिक इस फ़ैसले से भारतीय अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई. नकदी पर निर्भर रहने वाले ग़रीब और ग्रामीण लोगों का जन-जीवन सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ.

सरकार ने कहा था कि वह अर्थव्यवस्था से बाहर गैर कानूनी ढंग से रखे धन को निशाना बना रही थी क्योंकि इस धन से भ्रष्टाचार और दूसरी गैरकानूनी गतिविधियां बढ़ती हैं. टैक्स बचाने के लिए ही लोग इस पैसे की जानकारी छुपाते थे.

अनुमान ये था कि जिनके पास बड़ी संख्या में गैरक़ानूनी ढंग से जुटाए गए नकदी हैं उनके लिए इसे क़ानूनी तौर पर बदलवा पाना संभव नहीं होगा.

भारतीय रिजर्व बैंक की अगस्त, 2018 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक बैन किए नोटों का 99 फ़ीसदी हिस्सा बैंकों के पास लौट आया है. इस रिपोर्ट पर लोग चौंके भी और इसके बाद नोटबंदी की आलोचना भी तेज़ हुई.

इससे ये संकेत मिला कि लोगों के पास जिस गैर कानूनी संपत्ति की बात कही जा रही थी, वो सच नहीं था और अगर सच था तो लोगों ने अपनी गैरक़ानूनी संपत्ति को क़ानूनी बनाने का रास्ता निकाल लिया.

क्या ज़्यादा टैक्स संग्रह किया गया
बीते साल की एक आधिकारिक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक नोटबंदी के फ़ैसले के बाद टैक्स संग्रह की स्थिति बेहतर हुई है क्योंकि टैक्स जमा कराने वालों की संख्या बढ़ी है.

वास्तविकता यह है कि नोटबंदी के फ़ैसले से दो साल पहले कर संग्रह की वृद्धि दर ईकाई अंकों में थी. लेकिन 2016-17 में प्रत्यक्ष कर संग्रह में पिछले साल की तुलना में 14.5 फ़ीसदी की वृद्धि दर्ज की गई.

इसके अगले साल कर संग्रह में 18 फ़ीसदी की वृद्धि दर्ज की गई. भारतीय आयकर विभाग ने प्रत्यक्ष कर संग्रह में वृद्धि की वजह नोटबंदी को बताया है. इस फ़ैसले के चलते अधिकारी कर चुकाने लायक संपत्तिधारकों की पहचान कर सके और उन्हें कर भुगतान के दायरे में लाने में कामयाब हुए.

हालांकि 2008-09 और 2010-11 के दौरान भी प्रत्यक्ष कर संग्रह में इसी तरह की वृद्धि देखने को मिली थी, तब कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार सत्ता में थी.

ऐसे में कुछ विश्लेषणों से ज़ाहिर होता है कि सरकार की कुछ दूसरी नीतियों- मसलन 2016 में आयकर माफ़ी और इसके अगले साल नयी गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) लागू करना भी नोटबंदी की तरह कर संग्रह वृद्धि में सहायक साबित हुआ.

एक सवाल ये भी है कि नोटबंदी से जाली नोटों पर अंकुश लग पाया?

भारतीय रिज़र्व बैंक के मुताबिक ऐसा नहीं हुआ है. नोटबंदी के फ़ैसले के बाद तब के पिछले साल की तुलना में 500 और 1000 रूपये के जाली नोट कहीं ज़्यादा संख्या में बरामद हुए.

पहले भारतीय रिज़र्व बैंक की ओर से कहा गया था कि बाज़ार में पांच सौ और दो हज़ार रुपये के नए नोट जारी किए गए हैं, उनकी नकल कर पाना मुश्किल होगा, लेकिन भारतीय स्टेट बैंक के अर्थशास्त्रियों के मुताबिक इन नोटों का भी नकल संभव है और नए नोटों की नकल किए गए जाली नोट बरामद भी हुए हैं.

कैशलेस हुईअर्थव्यवस्था?
नोटबंदी के फ़ैसले के बाद, भारतीय अर्थव्यवस्था डिज़िटल होने की ओर ज़रूर अग्रसर हुई लेकिन भारतीय रिज़र्व बैंक के आंकड़े इस बात की ठोस तस्दीक नहीं करते.

लंबे समय से कैशलेस पेमेंट में धीरे धीरे बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही थी, लेकिन 2016 के अंत में जब नोटबंदी का फ़ैसला लिया गया था तब इसमें एक उछाल देखने को मिला था.

लेकिन इसके बाद फिर ये ट्रेंड अपने पुरानी रफ़्तार में लौट आया. इतना ही नहीं, समय के साथ कैशलेस पेमेंट में बढ़ोत्तरी की वजह नोटबंदी कम है और आधुनिक तकनीक और कैशलेस पेमेंट की बेहतर होती सुविधा ज़्यादा है.

इसके अलावा, नोटबंदी के समय भारतीय अर्थव्यवस्था में नकदी नोटों का मूल्य कम हो गया था. इसका असर भारतीय मुद्रा और जीडीपी के अनुपात पर भी देखने को मिला.

यह एक तरह से चलन में रहने वाली मुद्राओं के कुल मूल्य और पूरी अर्थव्यवस्था का अनुपात होता है. जब 500 और 1000 रुपये के नोट हटाए गए थे तब ये अनुपात तेजी से कम हो गया था लेकिन एक साल के अंदर ही चलन में आई मुद्राओं के चलते 2016 से पहले का अनुपातिक स्तर हासिल हो गया.

बहरहाल, नकदी का इस्तेमाल कम नहीं हुआ है और तेजी से बढ़ रही दूसरी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में आज भी भारत में सबसे ज़्यादा नकदी का इस्तेमाल हो रहा है.