Friday, April 19, 2019

वाजपेयी की सरकार गिरवाने वाली मायावती कभी प्रधानमंत्री बन पाएंगी?

पिछले दिनों देवबंद में जब मायावती, अखिलेश यादव और अजीत सिंह की संयुक्त रैली हुई और जैसे ही अजीत सिंह ने मंच पर चढ़ने की कोशिश की, बीएसपी के एक नेता ने अजीत सिंह से अपने जूते उतारने के लिए कहा. मायावती को ये पसंद नहीं है कि वो जब मंच पर चढ़ें तो उनके अलावा कोई वहां जूते पहने रहे.

अजीत सिंह को अपने जूते उतारने पड़े तब जा कर उन्हें मंच पर मायावती के साथ खड़े होने का मौक़ा मिल पाया. ये न सिर्फ़ एक महिला की सफ़ाई के प्रति प्रतिबद्धता, बल्कि संख्या के बल पर देश में निरंतर बदलने वाले सामाजिक सहभागिता के बदलते हुए समीकरणों को भी दर्शाता है.

मायावती के जीवनीकार अजय बोस की मानी जाए तो सफ़ाई के प्रति उनकी इस 'सनक' के पीछे भी एक कहानी है.

अजय बोस 'बहनजी: अ पॉलिटिकल बायोग्राफ़ी ऑफ़ मायावती' में लिखते हैं, ''जब मायावती पहली बार लोकसभा में चुन कर आईं तो उनके तेल लगे बाल और देहाती लिबास तथाकथित सभ्रांत महिला सांसदों के लिए मज़े की चीज़ हुआ करते थे. वो अक्सर शिकायत करती थीं कि मायावती को बहुत पसीना आता था. उनमें से एक ने एक वरिष्ठ महिला सांसद से यहां तक कहा था कि वो मायावती से कहें कि वो अच्छा 'परफ़्यूम' लगा कर सदन में आया करें.''

मायावती के नज़दीकी लोगों के अनुसार बार-बार उनकी जाति का उल्लेख और उनको ये आभास दिलाने की कोशिश कि दलित अक्सर गंदे होते हैं, का उन पर दीर्घकालीन असर पड़ा. उन्होंने हुक्म दिया कि उनके कमरे में कोई भी व्यक्ति वो चाहे जितना बड़ा हो, जूता पहन कर नहीं जाएगा.

मायावती की एक और जीवनीकार नेहा दीक्षित ने भी कारवां पत्रिका में उन पर लिखे लेख 'द मिशन - इनसाइड मायावतीज़ बैटल फ़ॉर उत्तर प्रदेश' में लिखा था, ''मायावती में सफ़ाई के लिए इस हद तक जुनून है कि वो अपने घर में दिन में तीन बार पोछा लगवाती हैं.''

मायावती के मिजाज़ के बारे में भविष्यवाणी करना बहुत कठिन है. बात 17 अप्रैल 1999 की है. राष्ट्रपति केआर नारायणन ने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार से लोकसभा में विश्वास मत लेने के लिए कहा था.

सरकार इसके लिए आश्वस्त भी थी, क्योंकि चौटाला एनडीए खेमे में वापस आने का ऐलान कर चुके थे और मायावती की तरफ़ से संकेत आए थे कि उनकी पार्टी मतदान में भाग नहीं लेगी.

उस दिन संसद भवन के पोर्टिको में जब अटल बिहारी वाजपेयी अपनी कार में बैठ रहे थे तो पीछे आ रही मायावती ने चिल्ला कर कहा था 'आपको चिंता करने की ज़रूरत नहीं.'

मतदान से कुछ समय पहले संसदीय कार्य मंत्री कुमारमंगलम ने बहुजन समाज पार्टी के सांसदों से बात कर कहा, अगर आपने सहयोग किया तो शाम तक मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री हो सकती हैं.

सरकार के खेमे में बढ़ती गतिविधियों को देख कर शरद पवार मायावती के पास पहुंचे. मायावती ने उनसे सीधा सवाल किया, "अगर हम सरकार के ख़िलाफ़ वोट करते हैं तो क्या सरकार गिर जाएगी?"

पवार ने जवाब दिया, "हाँ".

जब बहस के बाद वोटिंग का समय आया तो पूरे सदन में सन्नाटा छाया हुआ था.

मायावती आरिफ़ मोहम्मद ख़ां और अकबर अहमद डंपी की तरफ़ देख कर गरजीं, 'लाल बटन दबाओ.' ये उस ज़माने की सबसे बड़ी 'राजनीतिक कलाबाज़ी' थी.

जब इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का परिणाम 'फ़्लैश' हुआ तो वाजपेयी सरकार सरकार विश्वास मत खो चुकी थी. मायावती को इस तरह के बड़े फ़ैसले लेने से कभी परहेज़ नहीं रहा है.

हुआ ये थे कि एक दिन पहले दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में 21 साल की मायावती ने उस समय के स्वास्थ्य मंत्री राज नारायण पर ज़बरदस्त हमला बोला था.

राजनारायण अपने भाषण में दलितों को बार-बार 'हरिजन' कहकर संबोधित कर रहे थे. अपनी बारी आने पर मायावती चिल्लाईं, "आप हमें 'हरिजन' कह कर अपमानित कर रहे हैं."

एक दिन बाद रात के 11 बजे किसी ने उनके घर की कुंडी खटखटाई.

जब मायावती के पिता प्रभुदयाल दरवाज़ा खोलने आए तो उन्होंने देखा कि बाहर मुड़े-तुड़े कपड़ों में, गले में मफ़लर डाले, लगभग गंजा हो चला एक अधेड़ शख़्स खड़ा था.

उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा कि वो कांशीराम हैं और 'बामसेफ़' के अध्यक्ष हैं. उन्होंने कहा कि वो मायावती को पुणे में एक भाषण देने के लिए आमंत्रित करने आए हैं.

उस समय मायावती दिल्ली के इंदरपुरी इलाक़े में रहा करती थीं. उनके घर में बिजली नहीं होती थी. वो लालटेन की रोशनी में पढ़ रही थीं.

कांशीराम की जीवनी कांशीराम 'द लीडर ऑफ़ दलित्स' लिखने वाले बद्री नारायण बताते हैं, "कांशीराम ने मायावती से पहला सवाल पूछा कि वो क्या करना चाहती हैं. मायावती ने कहा कि वो आईएएस बनना चाहती हैं ताकि अपने समुदाय के लोगों की सेवा कर सकें."

'कांशीराम ने कहा, "तुम आईएएस बन कर क्या करोगी? मैं तुम्हें एक ऐसा नेता बना सकता हूं जिसके पीछे एक नहीं, दसियों 'कलेक्टरों' की लाइन लगी रहेगी. तुम सही मायने में तब अपने लोगों की सेवा कर पाओगी."

मायावती की समझ में तुरंत आ गया कि उनका भविष्य कहां है. हालांकि उनके पिता इसके सख़्त ख़िलाफ़ थे. इसके बाद मायावती कांशीराम के आंदोलन में शामिल हो गईं.

मायवती अपनी आत्मकथा 'बहुजन आंदोलन की राह में मेरी जीवन संघर्ष गाथा' में लिखती हैं कि एक दिन उनके पिता उन पर चिल्लाए - तुम कांशीराम से मिलना बंद करो और आईएएस की तैयारी फिर से शुरू करो, वरना तुरंत मेरा घर छोड़ दो.

Monday, April 15, 2019

'कठपुतली' कहलाने में मुझे कोई परेशानी नहीं: आलिया भट्ट

बीते कुछ वक़्त से कई हिट फ़िल्में जैसे हाइवे, हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया, कपूर एंड सन्स, उड़ता पंजाब, बदरीनाथ की दुल्हनिया, राज़ी और गली ब्वाय उनके नाम रही हैं.

आलिया ने अपनी अदाकारी के दम पर भले ही अपनी एक अलग पहचान बना ली हो लेकिन फिर भी कई बार उनके बारे में कहा जाता है कि वो करण जौहर के हाथ की कठपुतली है.

आलिया के बारे में यह चर्चा होती है कि वे करण जौहर की मर्ज़ी के बिना कोई फ़िल्म या बड़ा फ़ैसला नहीं लेती.

इन बातों का मुझपर कोई असर नहीं होता
हाल ही में आलिया भट्ट ने बीबीसी को दिए एक ख़ास इंटरव्यू में कहा, ''हम किसी को अपना गुरु इसलिए मानते हैं क्योंकि वो हमसे बेहतर होते हैं. वो हमेशा हमसे आगे ही रहेंगे.''

''करण ने मुझे मेरी काबिलियत दिखाने का पहला मौका दिया और जो आपको इंसान आपको पहला मौका देता है उसके लिए आपके दिल में बहुत इज़्ज़त रहेगी. मुझे इसमें कोई बुराई नहीं लगती अगर लोग मुझे उनकी कठपुतली मानते हैं. मुझ पर इस बात का कोई असर नहीं होता.''

आलिया कहती हैं कि अगर कठपुतली होना ये दिखाता है कि आप अपने गुरु की इज़्ज़त करते हो तो उन्हें कोई झिझक नहीं है कठपुतली बनने में.

बीते छह सालों में आलिया भट्ट की अधिकतर फ़िल्में कामयाब रही है. इसके बाद भी कुछ लोग उन पर सिर्फ एक ही निर्देशक के साथ बने रहने का इल्ज़ाम लगाते हैं.

इस पर आलिया का कहना है,''मेरे ज़हन में एक सवाल हमेशा रहता है कि ऐसा क्यों कहा जा रहा है? मुझे कई निर्देशक काम दे रहे है. फैंस भी बहुत पसंद कर रहे हैं तो ज़ाहिर सी बात है मैंने कुछ बेहतर काम किया होगा? कठपुतली जैसे शब्द आपको भड़काने के लिए कहे जाते है और मैं इन बातों से नहीं भड़कती हूँ.''

आजकल की ज़िंदगी डिप्रेशन एक ऐसी बीमारी बन गई है जिसके शिकार सिर्फ़ आम लोग ही नहीं बल्की कई बड़े नाम चीन चेहरे भी हुए हैं.

ख़ासकर बॉलीवुड सितारें जिनके लाखों फैंस होते हैं फिर भी वे अकेलेपन के शिकार हो जाते हैं.

दीपिका पादुकोण अक्सर अपने डिप्रेशन की चर्चा करती रही हैं और अब आलिया भी इस पर खुलकर बात करती दिख रही हैं.

आलिया का कहना है,''एक वक़्त ऐसा था जब मैं दो अलग-अलग अनुभवों को एक साथ जीती थी, कभी खुश रहती तो कभी दुखी. ज़्यादातर कोशिश करती थी कि खुश रहूं लेकिन जब दुखी रहती थी तो इसकी वजह नहीं जान पाती थी.''

''आज भी कभी-कभी डिप्रेशन जैसा महसूस करती हूँ तो इसकी वजह नहीं जान पाती. जब आप अंदर से टूटा हुआ महसूस करते हो तब आपको महसूस होता है कि आप डिप्रेशन में हो. इसे छिपाने की ज़रूरत नहीं है.''

''हमें यह स्वीकार करना आना चाहिए कि हम डिप्रेशन में है और इसे छिपाने के बजाये अपने परिवार को बताना चाहिए, अपने दोस्तों से अपनी बात साझा करनी चाहिए. मेरी बहन इससे गुज़र चुकी है.''

आलिया कहती हैं, ''मुझे जो होता है वो डिप्रेशन नहीं है क्योंकि मेरे साथ कुछ दिन ही ऐसा होता है जब मैं अपने आपको अकेलेपन में महसूस करती हूँ. अपने इसी अकेलेपन को दूर करने के लिए मैं अपने परिवार और दोस्तों से मिलती हूँ और उनके साथ कई बातें साझा करती हूँ.''

आलिया भट्ट की आगामी मल्टीस्टारर फ़िल्म 'कलंक' काफी चर्चा में है. इस फिल्म में आलिया के साथ संजय दत्त, सोनाक्षी सिन्हा, आदित्य रॉय कपूर, वरुण धवन और माधुरी दीक्षित जैसे कलाकार मुख्य भूमिका में हैं.

Monday, April 8, 2019

लोकसभा चुनाव 2019: रामदेव ने इस चुनाव में क्या अपना सियासी आसन बदल लिया

वैसे तो रामदेव योग गुरु हैं लेकिन वो सियासी आसन करना भी बख़ूबी जानते हैं.

वक़्त के हिसाब से फिट रहने के लिए कौन सा 'सियासी' आसन कब करना है, इसमें उन्हें महारथ हासिल है.

पाँच साल पहले जब तमाम राजनीतिक पंडित सीटों के गुणा-भाग में उलझे थे, तब रामदेव खुलकर बीजेपी के पक्ष में न केवल खड़े थे, बल्कि चुनावी प्रचार में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था.

आम चुनावों से लगभग एक साल पहले 31 मार्च 2013 को जयपुर में एक संवाददाता सम्मेलन में रामदेव ने कहा था कि अगर बीजेपी को सत्ता में आना है तो उन्हें नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में पेश करना चाहिए.

रामदेव ने कहा था, "अगर बीजेपी अगले लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में पेश करती है और अपनी प्राथमिकताएं बदलती है तो उसके लिए कुछ संभावनाएं बनती हैं."

नितिन गडकरी ने रामदेव के पैर छूकर आशीर्वाद लिए तो चुनाव से कुछ दिन पहले राजधानी दिल्ली में एक महोत्सव के दौरान नरेंद्र मोदी ने रामदेव के साथ मंच पर हाथ उठाकर गीत गाते नज़र आए.

फिर मंच से रामदेव ने अपने समर्थकों से 'मोदी को वोट देने और दूसरों को भी उन्हें ही वोट देने के की अपील की थी.

सत्ता में आने के बाद रामदेव को हरियाणा सरकार ने अपना ब्रैंड अंबेसडर बनाते हुए कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी दिया.

योग में रामदेव कई आसन करते हैं उसी तरह से राजनीति में भी वो आसन बदलना जानते हैं.

पिछले साल दिसंबर के आख़िरी हफ़्ते में मदुरई में उन्होंने कहा कि कुछ नहीं कहा जा सकता कि अगला प्रधानमंत्री कौन होगा. (अभी पाँच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे आए दो हफ़्ते ही हुए थे, जिसमें भाजपा तीन बड़े राज्य छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में सत्ता से बाहर हो गई थी)

ज़ाहिर है रामदेव अब नब्बे के दशक के सिर्फ़ योग बाबा नहीं रहे, उनका पतंजलि आयुर्वेद का हज़ारों करोड़ रुपए का कारोबार है.

यानी लंबी दाढ़ी और भगवा कपड़ा लपेटे बाबा योगी के अलावा अब अरबपति कारोबारी भी हैं. हरिद्वार से लगभग 25 किलोमीटर दूर रामदेव का साम्राज्य सड़क के दोनों ओर कई एकड़ में फैला हुआ है. स्कूल, अस्पताल, दवा बनाने की फैक्ट्री. ये एक टाउनशिप सी है.

मदुरई में उस संवाददाता सम्मेलन में रामदेव ने कहा, "अभी राजनीतिक स्थिति बेहद कठिन है. हम नहीं कह सकते कि अगला प्रधानमंत्री कौन होगा या इस देश का नेतृत्व कौन करेगा. लेकिन, स्थिति बहुत रोचक है."

उन्होंने ये भी कहा कि वो अब 'सर्वदलीय भी हैं और निर्दलीय' भी.

तो क्या रामदेव ने सियासी आसन का त्याग कर दिया है या फिर बेहद चतुर कारोबारी की तरह बाबा ने समय की नज़ाकत को भांपते हुए 'न काहू से दोस्ती न काहू से बैर' वाला फॉर्मूला अपना लिया है.

रविवार को यही जानने के इरादे से मैं पतंजलि योगपीठ में रामदेव से मिला. योग की क्लास लेने के बाद सुबह सात बजे से ही रामदेव के बैठकों के दौर शुरू हो गए. करीब दो घंटे के इंतज़ार के बाद बाबा ने मुझसे कहा, "आप तो राजनीति पर बात करोगे और मैं अभी इस पर कुछ नहीं बोलूँगा."

तो क्या आप इस बार बीजेपी और नरेंद्र मोदी का समर्थन नहीं कर रहे हैं? रामदेव का जवाब था, "फिर कभी बात करें. प्लीज़"

तो ऐसा क्या हो गया जो रामदेव राजनीति से तौबा कर रहे हैं और पाँच साल पहले भाजपा के लिए खुलकर प्रचार करने वाले बाबा को अब चुप्पी साधनी पड़ रही है.

क्या बीजेपी के लिए बाबा की ज़रूरत अब ख़त्म हो गई है या फिर क्या बाबा एक कुशल कारोबारी की तरह अपने सभी विकल्प खुले रखना चाहते हैं?

वरिष्ठ पत्रकार राजेश शर्मा कहते हैं कि बाबा रामदेव ने 2014 में काले धन को लेकर ज़ोर-शोर से अभियान चलाया था और अपने अनुयायियों से ये कहते हुए मोदी को वोट देने को कहा था कि उनकी सरकार विदेशों से काला धन भारत लाएगी, लेकिन मोदी सरकार इस मोर्चे पर ख़ास कुछ नहीं कर सकी. उनकी परेशानी ये है कि वो इस मुद्दे पर अपने अनुयायियों को कैसे समझाएं?

शर्मा कहते हैं, "रामदेव के वैदिक शिक्षा बोर्ड के प्रस्ताव को स्वीकार कर भाजपा ने एक तरह से उन्हें मनाने की कोशिश भी की है."

शहर के एक और पत्रकार पीएस चौहान कहते हैं, "इस बार बाबा के पास मोदी के पक्ष में बात करने के लिए हाई मोरल ग्राउंड नहीं बचा है. काला धन पर कोई काम नहीं हुआ. दूसरे, ये भी लगता है कि रामदेव क्योंकि अब कारोबारी भी हैं, इसलिए अभी के राजनीतिक माहौल को देखते हुए वो कोई साइड नहीं लेना चाहते."

पतंजलि ने 2018 में आय, मुनाफ़े के आंकड़े तो नहीं दिए, लेकिन कहा कि कंपनी की आय तकरीबन पिछले साल यानी वित्त वर्ष 2017 के बराबर ही रही.

वित्त वर्ष 2017 में पतंजलि आयुर्वेद की आमदनी 10,561 करोड़ रुपए थी, जो कि उससे पिछले साल के मुक़ाबले दोगुने से अधिक थी. बालकृष्ण ने माना था कि नोटबंदी और जीएसटी का 'थोड़ा बहुत असर' पतंजलि पर भी हुआ है.

हालांकि उनकी दलील थी कि ग्रोथ का आंकड़ा इसलिए कम रहा, क्योंकि पतंजलि का फ़ोकस इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने और सप्लाई चेन खड़ा करने पर था.

Friday, April 5, 2019

20 मिनट से लेकर 17 दिन पहले पाला बदलने वाले नेताओं को पार्टियों से टिकट मिल गए

नई दिल्ली. इस बार लोकसभा चुनाव में पाला बदलने वाले या पार्टी में शामिल होने वालों को जल्दी टिकट मिल रहे हैं। अभिनेत्री जयाप्रदा को जहां भाजपा में शामिल होने के बाद महज 5 घंटे में रामपुर से टिकट मिल गया, वहीं भाजपा छोड़कर आए सांसद अशोक दोहरे को कांग्रेस ने अपनी पार्टी में शामिल होने के 20 मिनट बाद ही टिकट दे दिया। इसी तरह अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर को कांग्रेस ने 2 दिन में मुंबई उत्तर से उम्मीदवार बना दिया। भोजपुरी गायक-अभिनेता दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ को भाजपा में शामिल होने के 7 दिन के अंदर ही आजमगढ़ में अखिलेश यादव के खिलाफ टिकट मिल गया।

जयाप्रदा को 5 घंटे में टिकट मिला : अभिनेत्री जयाप्रदा ने 26 मार्च की दोपहर भाजपा की सदस्यता ली थी। पांच घंटे से भी कम समय में उन्हें पार्टी ने उत्तर प्रदेश की रामपुर सीट से प्रत्याशी घोषित कर दिया। जया रामपुर से दो बार 2004 और 2009 में सपा के टिकट पर जीत चुकी हैं। सपा छोड़ने के बाद 2014 में वे रालोद के टिकट पर चुनाव लड़ी थीं। बाद में अमर सिंह की पार्टी में भी रहीं। सपा में शामिल होने से पहले वे आंध्र प्रदेश से तेदेपा के टिकट पर राज्यसभा सांसद रह चुकी हैं।

अशोक दोहरे - 20 मिनट पहले कांग्रेस में आए भाजपा सांसद को भी मिला टिकट : भाजपा ने 2014 में मोदी लहर में उप्र के इटावा से जीते अशोक दोहरे का टिकट काट दिया। नाराज दोहरे 29 मार्च को कांग्रेस में शामिल हुए। पार्टी ज्वाइन करने के महज 20 मिनट बाद कांग्रेस ने दोहरे को इटावा से मैदान में उतार दिया। दोहरे 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा छोड़कर भाजपा में आए थे। वे मायावती की सरकार में जल संसाधन मंत्री भी रह चुके हैं।

सावित्री बाई फुले : भाजपा सांसद सावित्री बाई फुले 2 मार्च को कांग्रेस में शामिल हुईं। 13 मार्च को पार्टी ने उत्तर प्रदेश में अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की। इस लिस्ट में बहराइच से सावित्री बाई फुले को टिकट दिया गया। वे प्रियंका गांधी की नाव यात्रा के दौरान काफी सक्रिय रही थीं।

श्यामाचरण गुप्त : 16 मार्च को सपा ने बांदा लोकसभा सीट पर उम्मीदवार का ऐलान किया। पार्टी ने इलाहाबाद से भाजपा सांसद श्यामाचरण गुप्त को टिकट दिया। तब पता चला कि वे भाजपा छोड़कर सपा में आ गए हैं। दिलचस्प यह है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में भी उन्हें सपा ने टिकट दिया था। उसके बाद उन्हें भाजपा ने इलाहाबाद से टिकट दे दिया और वे भाजपा में चले गए।

उर्मिला मातोंडकर : अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर ने 27 मार्च को दिल्ली में कांग्रेस की सदस्यता ली। पार्टी में शामिल होने के पहले ही उन्हें मुंबई उत्तर से टिकट मिलने की चर्चा थी। पार्टी ज्वाइन करने के दो दिन बाद उन्हें टिकट मिल गया।

सुजय विखे पाटिल : महाराष्ट्र में कांग्रेस नेता राधाकृष्ण विखे पाटिल के बेटे सुजय विखे पाटिल 12 मार्च को कांग्रेस छोड़ भाजपा में आ गए। 21 मार्च को भाजपा ने लोकसभा उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी की। इसमें सुजय का भी नाम था। पार्टी ने उन्हें अहमदनगर सीट से टिकट दिया है।

निरहुआ को 7 दिन में टिकट मिला : भोजपुरी गायक-अभिनेता दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ को भाजपा में शामिल होने के 7 दिन के अंदर टिकट मिला। वे ही आजमगढ़ में सपा प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे। निरहुआ कभी अखिलेश के साथ सपा उम्मीदवारों के लिए प्रचार करते थे।

इन दलबदलुओं को टिकट मिलने का इंतजार : कीर्ति आजाद: दरभंगा से भाजपा सांसद हैं। 18 फरवरी को कांग्रेस में आए। दरभंगा सीट राजद के कोटे में जाने बाद अब कीर्ति को झारखंड की धनबाद या बिहार की वाल्मीकि नगर सीट से टिकट मिलने की चर्चा चल रही है।

प्रवीण निषाद : गोरखपुर से सपा सांसद प्रवीण निषाद 4 अप्रैल को भाजपा में शामिल हुए। उनके पिता के राजनीतिक दल निषाद पार्टी ने भाजपा से गठबंधन किया है। प्रवीण को गोरखपुर या भदोही से टिकट मिलने की चर्चा है।

शत्रुघ्न सिन्हा : पटना साहिब से भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा के कांग्रेस में शामिल होने की चर्चा है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से उनकी मुलाकात हो चुकी है। ऐसी संभावना है कि उन्हें पार्टी पटना साहिब से उम्मीदवार बनाएगी।