Wednesday, January 29, 2020

أُنس جابر: لاعبة التنس التونسية تستمر بالتألق في بطولة أستراليا

تواصل لاعبة التنس التونسية، أُنس جابر، تقدمها في بطولة أستراليا المفتوحة؛ إذ أصبحت اليوم أول لاعبة عربية تصل إلى ربع نهائي هذه البطولة التي تعد واحدة من أكبر أربع بطولات في العالم في كرة المضرب.

وفازت اللاعبة التونسية، ذات الـ 25 عاما، على الصينية، وانغ كيانغ، ومن قبلها الدنماركية، كارولاين فوزنياكي، التي كانت في السابق المصنفة الأولى عالميا.

وكانت الصينية، وانغ كيانغ، قد حققت مفاجأة عندما أخرجت اللاعبة الأمريكية الشهيرة، سيرينا ويليامز، من البطولة.

وقالت أُنس "إنني أرتجف، لا أستطيع وصف المشاعر التي تعتريني"، وفقا لما نقلته وكالة الأنباء الفرنسية.

وتفخر اللاعبة الشابة بأنها "تحاول أن تكون مصدر إلهام للكثيرين في تونس والبلدان العربية، وخاصة الإفريقية منها. أنا فعلتها. الأمر ليس مستحيلا"، كما قالت في مؤتمر صحفي، لتضيف ضاحكة "تدربت في تونس منذ عمر الثاالثة. أنا منتج تونسي 100 في المئة".

وتمكنت أنس في عام 2017 من دخول قائمة أفضل 100 لاعبة في العالم، وعام 2018 انضمت لقائمة أفضل 60 لاعبة، كما تمكنت عام 2019 من الوصول إلى رقم 51 في سبتمبر/أيلول - أعلى تصنيف لها منذ احترافها عام 2010.

وكانت أُنس قد هزمت الدنماركية، كارولاين فوزنياكي، في مباراة، كانت آخر مباراة رسمية للأخيرة قبل اعتزالها الذي أعلنته نهاية العام الماضي.

وقالت لراديو موزاييك التونسي إنّ فوزها على فوزنياكي ضمن الدور الثالث من بطولة أستراليا المفتوحة "لم يكن سهلا".

وفي نهاية المباراة، وبعد إعلان النتيجة قالت أُنس إن فوزنياكي "مصدر إلهام لها" وإنها كانت "محظوظة جدا" لأنها لعبت ضدها في مباراتها الأخيرة.

وتلتقي أُنس جابر في دور الثمانية مع صوفيا كينين، المصنفة 14 والتي فازت على مواطنتها الأمريكية، كوكو جوف.

وكانت كوكو قد فاجأت العالم العام الماضي عندما فازت على فينوس ويليامز بنتيجة مجموعتين دون مقابل، خلال الأدوار التمهيدية في بطولة ويمبلدون في إنجلترا.

وستكون المباراة "ثأرية" لجابر لأنها كانت قد خسرت أمام كينن في دورة هوبارت الأسترالية العام الماضي، وانسحبت أمامها في مايوركا الإسبانية.

واستعرض موقع يوروسبورت العربي أبرز لاعبي التنس العرب المحترفين، وهم: المصري اسماعيل الشافعي، أول لاعب عربي يحترف التنس ويصل إلى بطولة عالمية، واعتزل عام 1983، والمغربي هشام ارازي ووصل إلى المركز رقم 22 على مستوى العالم، والمغربي يونس العيناوي وكان عمره 32 عندما وصل إلى ترتيب 14، والمغربي كريم العلمي وترتيبه كان الـ 25، والتونسي مالك الجزيري الذي احترف بعمر الـ 29 ولا يزال اليوم مشاركا في البطولات العالمية للكرة الصفراء.

تواصل لاعبة التنس التونسية، أُنس جابر، تقدمها في بطولة أستراليا المفتوحة؛ إذ أصبحت اليوم أول لاعبة عربية تصل إلى ربع نهائي هذه البطولة التي تعد واحدة من أكبر أربع بطولات في العالم في كرة المضرب.

وفازت اللاعبة التونسية، ذات الـ 25 عاما، على الصينية، وانغ كيانغ، ومن قبلها الدنماركية، كارولاين فوزنياكي، التي كانت في السابق المصنفة الأولى عالميا.

وكانت الصينية، وانغ كيانغ، قد حققت مفاجأة عندما أخرجت اللاعبة الأمريكية الشهيرة، سيرينا ويليامز، من البطولة.

وقالت أُنس "إنني أرتجف، لا أستطيع وصف المشاعر التي تعتريني"، وفقا لما نقلته وكالة الأنباء الفرنسية.

Wednesday, January 1, 2020

मोदी सरकार की वफ़ादारी में बीता मीडिया के लिए ये साल: नज़रिया

77 वर्षीय रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी एक मानवाधिकार कार्यकर्ता, ख़ासकर दलितों और आदिवासियों के हित में काम करने वाले समाजसेवी के रूप में जाने जाते हैं. 19 दिसंबर को लखनऊ में विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़काने के मामले में उन्हें गिरफ़्तार किया गया था.

1972 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे एसआर दारापुरी पुलिस सेवा से रिटायर होने के बाद सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर काम करते रहे हैं. दारापुरी साल 2019 में लोक राजनीति मंच नामक संगठन के बैनर तले लखनऊ सीट से लोकसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं. इस संगठन की स्थापना साल 2004 में मशहूर पत्रकार कुलदीप नैयर ने की थी.

बताया जा रहा है कि पुलिस ने प्रदर्शनकारियों की संपत्ति कुर्क करने के लिए जो सूची तैयार की थी, उसमें ग़लती से कुछ लोगों का नाम शामिल नहीं था लेकिन अब उन्हें भी नोटिस भेजा जा रहा है.

लखनऊ के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक पूर्वी सुरेश चंद्र रावत का कहना था, "एसआर दारापुरी, सदफ़ जफ़र, दीपक कबीर और मो. शोएब को हज़रतगंज पुलिस ने गिरफ्तार करके जेल भेजा था. चारों पर आरोप हैं कि उन्होंने धारा 144 लागू होने के बाद भी ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से लोगों को बुलाकर सम्मेलन किया, जिसके दौरान उपद्रव और हिंसा हुई."

एएसपी रावत ने बताया कि हिंसा से हुई संपत्ति के नुक़सान की वसूली के लिए एक-दो दिन में जांच पूरी करके चारों को नोटिस भेजा जाएगा और चारों की संपत्ति कुर्क करके पुलिस नुक़सान की भरपाई करेगी.

आइए जानते हैं कि ये कौन लोग हैं जिन्हें पुलिस ने पहले गिरफ़्तार किया और अब उनकी संपत्ति कुर्क करने की तैयारी कर रही है.

एसआर दारापुरी के परिजनों और उनके क़रीबियों के अनुसार, वो आंबेडकर महासभा समेत तमाम संगठनों में भी सक्रिय भूमिका निभाते रहे हैं. मैग्सेसे पुरस्कार विजेता और सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडेय भी दारापुरी के साथ सामाजिक कार्यों में शामिल रहे हैं.

नागरिकता क़ानून का विरोध करने के बाद उन पर दोहरी मार पड़ी. एक ओर पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार करके जेल भेज दिया तो दूसरी ओर शिया कॉलेज ने उन्हें निलंबित कर दिया है.

शिया कॉलेज में रॉबिन प्रबंधन विभाग में पढ़ाते थे. कॉलेज के कार्यवाहक प्राचार्य डॉ. मिर्जा मोहम्मद अबु तैयब के मुताबिक रॉबिन सेल्फ फ़ाइनेंस योजना के अंतर्गत संचालित बीबीए विभाग में संविदा पर कार्यरत थे.

तैयब ने बताया कि हिंसा मामले में रॉबिन की गिरफ़्तारी की सूचना के बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया है. कॉलेज ने उनकी संलिप्तता की जांच के लिए एक आंतरिक कमेटी भी बनाई है जिसकी जांच रिपोर्ट के बाद कॉलेज आगे की कार्रवाई पर विचार करेगा.

दारापुरी के परिजनों का कहना है कि दारापुरी कैंसर से पीड़ित हैं और उनकी पत्नी भी लंबे वक्त से बीमार हैं.

मोहम्मद शोएब पेशे से वकील हैं और रिहाई मंच नामक संगठन के संस्थापक हैं. इस मंच के ज़रिए ये लोग ऐसे लोगों का मुक़दमा लड़ते हैं जिन्हें बेवजह मुक़दमों में फँसाया जाता है और ग़रीबी या किन्हीं अन्य विवशताओं की वजह से ये लोग ख़ुद की पैरवी नहीं कर पाते हैं या

कोई वकील नहीं कर पाते हैं. मोहम्मद शोएब भी नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़काने के आरोप में जेल भेजे गए हैं.

मोहम्मद शोएब शुरुआती दौर से ही सोशलिस्ट पार्टी से जुड़े रहे और मौजूदा समय में सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं. इस पार्टी की छात्र इकाई से जुड़े रहने के दौरान 1960 के दशक में वो छात्र आंदोलन में हिस्सा लेने के चलते जेल भी गए. साल 1972 में उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से क़ानून की पढ़ाई की और उसके बाद से ही लखनऊ में वक़ालत कर रहे हैं.

संदीप पांडेय बताते हैं, "मोहम्मद शोएब ने एक कार्यक्रम में तत्कालीन राष्ट्रपति वीवी गिरि के सामने ही अपनी डिग्री यह कहते हुए जला दी थी कि युवाओं को डिग्री की नहीं, नौकरी की ज़रूरत है. इस अपराध के लिए उन पर उस वक़्त पचास रुपये का अर्थदंड लगा था और आगे किसी भी कक्षा में प्रवेश लेने से प्रतिबंधित कर दिया गया."

रिहाई मंच नामक संस्था के ज़रिए मोहम्मद शोएब और उनके साथियों ने ऐसे कई लोगों को अदालत से बरी कराया है जिनके ख़िलाफ़ चरमपंथी घटनाओं में शामिल होने या फिर साज़िश करने का आरोप लगा था.

नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध करने के आरोप में लखनऊ की रहने वालीं सदफ़ जाफ़र को भी गिरफ़्तार किया गया है. कांग्रेस कार्यकर्ता और फ़िल्म अभिनेत्री सदफ़ जाफ़र 19 दिसंबर को प्रदर्शन के दौरान हो रही हिंसा का विरोध करते हुए फ़ेसबुक लाइव कर रही थीं. सदफ़ पुलिस वालों से ये भी अपील कर रही थीं कि इन लोगों को क्यों नहीं पकड़ा जा रहा है. लेकिन, अगले दिन उन्हें भी गिरफ़्तार करके जेल भेज दिया गया.

शिक्ष‍ि‍का रह चुकीं सदफ़ फ़िल्म निर्माता मीरा नायर की आने वाले फ़िल्म 'ए सूटेबल ब्वॉय' में भी काम कर चुकी हैं. लखनऊ की रहने वाली सदफ़ की निजी ज़िंदगी काफी उथल-पुथल भरी रही है. उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि शादी के बाद आठ साल तक पति के साथ रहीं लेकिन पति की प्रताड़ना से इतना तंग आ गई थीं कि आत्महत्या तक करने की कोशिश की.

सिंगल मदर के तौर पर सदफ़ की ज़िंदगी की चर्चा मीडिया में भी ख़ूब हुई. सदफ़ के जानने वालों के मुताबिक उन्होंने अपने बच्चों का ख़र्च उठाने के लिए टीचर की नौकरी की और थिएटर से भी जुड़ी रहीं. इसके अलावा वह सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय भूमिका निभाती रही हैं. हालांकि,

लंबे समय तक संघर्ष के बाद अब वह लखनऊ की राजनीति, थियेटर और सामाजिक क्षेत्र का एक जाना-पहचाना नाम हैं. पिछले साल आई 'लखनऊ सेंट्रल' में भी सदफ़ ने काम किया था. इस फ़िल्म में उन्होंने फ़रहान अख़्तर के साथ दमदार भूमिका निभाई थी.

लखनऊ के सामाजिक कार्यकर्ता दीपक कबीर भी उन लोगों में शामिल हैं जिन्हें नागरिकता क़ानून के विरोध में प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़काने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया है. उनकी एक्टिविस्ट पत्नी वीना राणा के मुताबिक, "कबीर अपने कुछ दोस्तों के साथ उन लोगों का पता लगाने हज़रतगंज थाने गए थे जो लोग

19 दिसंबर को हुए प्रदर्शन के दौरान लापता थे. पुलिस ने उन्हें वहीं बिठा लिया और मोबाइल फ़ोन भी छीन लिया. दीपक को पीटा भी गया और फिर दो दिन बाद पता चला कि उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया है."

दीपक कबीर लखनऊ के जाने माने थिएटर कलाकार और कवि हैं. दीपक लखनऊ में कबीर फ़ेस्टिवल नाम का एक साहित्यिक कार्यक्रम भी हर साल आयोजित करते हैं.

रॉबिन वर्मा लखनऊ विश्वविद्यालय से जुड़े शिया कॉलेज में पढ़ाते हैं और सामाजिक कार्यों में भी उनकी ख़ासी दिलचस्पी रहती है. रॉबिन वर्मा भी रिहाई मंच से जुड़े हैं और अक़्सर ज़रूरतमंद लोगों के लिए आवाज़ उठाते हैं.